Saturday, March 3, 2012

हिन्दू धर्म की कुछ प्रचलित विशेषताएं -----



हिंदुत्व केवल धर्म नही अपितु ये सफल जीवन जीने का तरीका है. हिंदू धर्म में कई विशेषताएँ है. इसको सनातन धर्म भी कहाँ गया है. भागवद गीता के अनुसार सनातन का अर्थ होता है वो जो अग्नि से, पानी से , हवा से, अस्त्र से नष्ट न किया जा सके और वो जो हर जीव और निर्जीव में विद्यमान है. धर्म का अर्थ होता है जीवन जीने की कला. सनातन धर्म की जड़े आद्यात्मिक विज्ञान में है. सम्पूर्ण हिंदू शास्त्रों में विज्ञान और आध्यात्म जुड़े हुए है. यजुर्वेद के चालीसवे अध्याय के उपनिषद में ऐसा वर्णन आता है कि जीवन की समस्याओ का समाधान विज्ञान से और आद्यात्मिक समस्याओ के लिए अविनाशी दर्शनशास्त्र का उपयोग करना चाहिए.

स्मृति से हमें बताती है की व्यक्ति को एक चौथाई ज्ञान आचार्य या गुरु से मिल सकता है, एक चौथाई स्वयं के आत्मावलोकन से, अगला एक चौथाई अपने संग या संगती में विचार विमर्श करने से और आखिरी एक चौथाई अपने जीवन शैली से जिसमे सद्विचार और सदव्यवहार को जोड़ना, कमजोरीयों को हटाना, अपना सुधार करते रहना और समय के अनुकूल परिवर्तन करना शामिल है. अकसर आज के मानव के मन में कई बार रीती रिवाजो को लेकर क्यो, कैसे और किसलिए आदि प्रश्न उठते रहते है. आईये हिंदू धर्म से सम्बंधित कुछ जिज्ञासाओं का जवाब पाने का प्रयास करे.


ॐ का उच्चारण क्यों करते है ?
भगवान के सामने दीपक क्यों प्रज्वालित किया जाता है ?
घर में पूजा का कमरा क्यों होता है ?
हम नमस्ते क्यों करते है ?
हम बडो के पैर क्यों छूते है ?
हम आरती क्यों करते है ?
भगवान को नारियल क्यों अर्पित किया जाता है ?
ॐ शांति शांति शांति में शांति शब्द का उच्चारण तीन बार क्यों किया जाता है ?
कलश पूजा क्यों की जाती है ?
शंख क्यों बजाया जाता है ?
उपवास का क्या महत्त्व है ?
पुस्तक को पाँव से क्यों नहीं छूते है ?



ॐ का उच्चारण क्यों करते है ? ?

हिंदू में ॐ शब्द के उच्चारण को बहुत शुभ माना जाता है. प्रायः सभी मंत्र ॐ से शुरू होते है. ॐ शब्द का मन, चित्त, बुद्धि और हमारे आस पास के वातावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ॐ ही एक ऐसा शब्द है जिसे अगर पेट से बोला जाए तो दिमाग की नसों में कम्पन होता है. इसके अलावा ऐसा कोई भी शब्द नही है जो ऐसा प्रभाव डाल सके.

ॐ शब्द तीन अक्षरो से मिल कर बना है जो है "अ", "उ" और "म". जब हम पहला अक्षर "अ" का उच्चारण करते है तो हमारी वोकल कॉर्ड या स्वरतन्त्री खुलती है और उसकी वजह से हमारे होठ भी खुलते है. दूसरा अक्षर "उ" बोलते समय मुंह पुरा खुल जाता है और अंत में "म" बोलते समय होठ वापस मिल जाते है. अगर आप गौर से देखेंगे तो ये जीवन का सार है पहले जन्म होता है, फिर सारी भागदौड़ और अंत में आत्मा का परमात्मा से मिलन.

ॐ के तीन अक्षर आद्यात्म के हिसाब से भी ईश्वर और श्रुष्टि के प्रतीकात्मक है. ये मनुष्य की तीन अवस्था (जाग्रत, स्वपन, और सुषुप्ति), ब्रहांड के तीन देव (ब्रहा, विष्णु और महेश) तीनो लोको (भू, भुवः और स्वः) को दर्शाता है. ॐ अपने आप में सम्पूर्ण मंत्र है.



भगवान के सामने दीपक क्यों प्रज्वालित किया जाता है ?

हर हिंदू के घर में भगवान के सामने दीपक प्रज्वालित किया जाता है. हर घर में आपको सुबह, या शाम को या फिर दोनों समय दीपक प्रज्वालित किया जाता है. कई जगह तो अविरल या अखंड ज्योत भी की जाती है. किसी भी पूजा में दीपक पूजा शुरू होने के पूर्ण होने तक दीपक को प्रज्वालित कर के रखते है.

प्रकाश ज्ञान का घोतक है और अँधेरा अज्ञान का. प्रभु ज्ञान के सागर और सोत्र है इसलिए दीपक प्रज्वालित कर प्रभु की अराधना की जाती है. ज्ञान अज्ञान का नाश करता है और उजाला अंधेरे का. ज्ञान वो आंतरिक उजाला है जिससे बाहरी अंधेरे पर विजय प्राप्त की जा सकती है. अत दीपक प्रज्वालित कर हम ज्ञान के उस सागर के सामने नतमस्तक होते है.

कुछ तार्किक लोग प्रश्न कर सकते है कि प्रकाश तो बिजली से भी हो सकता है फिर दीपक की क्या आवश्यकता ? तो भाई ऐसा है की दीपक का एक महत्त्व ये भी है कि दीपक के अन्दर जो घी या तेल जो होता है वो हमारी वासनाएं, हमारे अंहकार का प्रतीक है और दीपक की लौ के द्वारा हम अपने वासनाओं और अंहकार को जला कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते है. दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि दीपक की लौ हमेशा ऊपर की तरफ़ उठती है जो ये दर्शाती है कि हमें अपने जीवन को ज्ञान के द्वारा को उच्च आदर्शो की और बढ़ाना चाहिए. अंत में आइये दीप देव को नमस्कार करे :

शुभम करोति कलयाणम् आरोग्यम् धन सम्पदा, शत्रुबुध्दि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते ।।
सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, शत्रु की बुद्धि के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं।



पूजा का कमरा घर में क्यों होता है ?

घरो में पूजा के कमरे का अपना महत्त्व है. हर घर में पूजा का कमरा होता है जहाँ पर दीपक लगा कर भगवान की पूजा की जाती है, ध्यान लगाया जाता है या पाठ किया जाता है. भगवान चूँकि पुरी श्रष्टि के रचियेता है और इस हिसाब से घर के असली मालिक भी भगवान ही हुए. भगवान का कमरा ये भावः दर्शाता है की प्रभु इस घर के मालिक है और घर में रहने वाले लोग भगवान की दी हुई जमीन पर इस घर में रहते है. ये भावः हमें झूठा अभिमान और स्वत्वबोध से दूर रखता है.

आदर्श स्तिथि में मनुष्य को ये मानना चाहिए की भगवान ही घर के मालिक है और मनुष्य केवल उस घर का कार्यवाहक प्रभारी है. एक अन्य भावः ये भी है की ईश्वर सर्वव्यापी है और घर में भी हमारे साथ रहता है इसलिए घर में एक कमरा प्रभु का है.

जिस तरह घर में प्रत्येक कार्य के लिए अलग अलग कक्ष होते है, जैसे आराम के लिए शयनकक्ष, खाना बनाने के लिए रसोईघर, मेहमानों के लिए ड्राइंग रूम या आगंतुक कक्ष ठीक उसी प्रकार हमारे आध्यात्म के लिए भगवान का कमरा होता है जहाँ पर बैठ कर ध्यान पूजा पाठ और जप किया जा सकता है.


हम नमस्ते क्यों करते है ?

शास्त्रों में पाँच प्रकार के अभिवादन बतलाये गए है जिन में से एक है "नमस्कारम". नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है. संस्कृत में इसे विच्छेद करे तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः + ते. नमः का मतलब होता है मैं (मेरा अंहकार) झुक गया. नम का एक और अर्थ हो सकता है जो है न + में यानी की मेरा नही.

आध्यात्म की दृष्टी से इसमे मनुष्य दुसरे मनुष्य के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है. नमस्ते करते समय में दोनों हाथो को जोड़ कर एक कर दिया जाता है जिसका अर्थ है की इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गये.



हम बडो के पैर क्यों छूते है ?

भारत में बड़े बुजुर्गो के पाँव छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. ये दरअसल बुजुर्ग, सम्मानित व्यक्ति के द्वारा किए हुए उपकार के प्रतिस्वरुप अपने समर्पण की अभिव्यक्ति होती है. अच्छे भावः से किया हुआ सम्मान के बदले बड़े लोग आशीर्वाद देते है जो एक सकारात्मक उर्जा होती है. आदर के निम्न प्रकार है :

प्रत्युथान : किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना
नमस्कार : हाथ जोड़ कर सत्कार करना
उपसंग्रहण : बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना
साष्टांग : पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पुरे लेट कर सम्मान करना
प्रत्याभिवादन : अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना

किसे किसके सामने किस विधि से सत्कार करना है ये शास्त्रों में विदित है. उदहारण के तौर पर राजा केवल ऋषि मुनि या गुरु के सामने नतमस्तक होते थे.



हम आरती क्यों करते है.

जब भी कोई घर में भजन होता है, या कोई संत का आगमन होता है या पूजा पाठ के बाद हिंदू धर्म में दीपक को दायें से बाएँ तरफ़ वृताकार रूप से घुमा कर साथ में कोई वाद्य यन्त्र बजा कर अन्यथा हाथ से घंटी या ताली बजा कर भगवान की आरती की जाती है. ये पूजा की विधि में षोडश उपचारों में से एक है. आरती के पश्च्यात दीपक की लौ के उपर हाथ बाएँ से दायें घुमा कर हाथ से आँखों और सर को छुआ जाता है.

आरती में कपूर जलाया जाता है वो इसलिए की कपूर जब जल जाता है तो उसके पीछे कुछ भी शेष नही रहता. ये दर्शाता है कि हमें अपने अंहकार को इसी तरह से जला डालना है की मन में कोई द्वेष, विकार बाकी न रह जाए. कपूर जलते समय एक भीनी सी महक भी देता है जो हमें बताता है कि समाज में हमें अंहकार को जला कर खुशबु की तरह फैलते हुए सेवा भावः में लगे रहना है.

दीपक प्रज्वालित कर के जब हम देव रूपी ज्ञान का प्रकाश फैलाते है तो इससे मन में संशय और भय के अंधकार का नाश होता है. उस लौ को जब हम अपने हाथ से अपनी आँखों और अपने सर पर लगा कर हम उस ज्ञान के प्रकाश को अपनी नेत्र ज्योति से देखने और दिमाग से समझने की दुआ मांगते है.



भगवान को नारियल क्यों अर्पित किया जाता है ?

आप देखेंगे की मन्दिर में आम तौर पर नारियल अर्पित किया जाता है. शादी, त्यौहार, गृह प्रवेश, नई गाड़ी के उपलक्ष में या किसी प्रकार के अन्य उत्सव या शुभ कार्य में भी प्रभु को नारियल अर्पित किया जाता है. प्रभु को नारियल अर्पित के पीछे जो मुख्य कारण है, आइये उनका अवलोकन करे. नारियल अर्पित करने से पहले उसके सिर के अलावा सारे तंतु या रेशे उतार लिए जाते है. ऐसे में अब ये नारियल मानव खोपडी के सामान दीखता है और इसे फोड़ना इस बात का प्रतीक है कि कर हम अपने अंहकार को तोड़ रहे है. नारियल के अन्दर का पानी हमारी भीतर की वासनाये है जो हमारे अंहकार के फूटने पर बह जाती है.

नारियल निस्वार्थता का भी प्रतीक है. नारियल के पेड़ का तना, पत्ती, फल (नारियल या श्रीफल) मानव को घर का छज्जा, चटाई, तेल, साबुन आदि बनाने में काम में आता है. नारियल का पेड़ समुद्र का खारा पानी लेकर मीठा, स्वादिष्ट और पौष्टिक नारियल और नारियल का पानी देता है.



ॐ शांति शांति शांति में शांति शब्द का उच्चारण तीन बार क्यों किया जाता है ?

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो हमेशा भीतर और बहार शांति की खोज में लगा रहता है. मनुष्य या तो अपने लिए ख़ुद विघ्न खड़ा करता है या फिर दुसरे लोग उसकी शांति में बाधा उत्पन्न करते है. जब तक कोई उपद्रव नही होता वहां शांति रहती है. वादविवाद शांत होने के बाद शांति उसी तरह कायम हो जाती है जैसे पहले थी. आज के वातावरण में झमेलों के चलते शांति की खोज बहुत कठिन है. कुछ लोग होते है जो कठिन से कठिन परिस्तिथि में भी शांत रहते है. हिंदू धर्म में शांति का आह्वान करने के लिए मंत्र, यज्ञ आदि के अंत में तीन बार शांति का उच्चारण किया जाता है जिसे त्रिव्रम सत्य भी कहा जाता है. सम्पूर्ण दुखो के तीन उद्भव स्थान माने गए है और तीन बार शांति का उच्चारण करके इन उद्भव स्थानों को संबोधित किया जाता है.

पहली बार शांति का उद्घोष अधिदेव शांति के लिए किया जाता है. इसमे ईश्वरीय शक्ति जैसे प्राकृतिक आपदाये, भूकंप, ज्वालामुखी, बाढ़ आदि जिन पर मानव का कोई नियंत्रण है है उसे शांत रखने की प्रार्थना की जाती है.
दूसरी बार शांति का उद्घोष आधिभौतिक शांति के लिए किया जाता है. इसमे दुर्घटना, प्रदुषण, अधर्म, अपराध आदि से शांत बने रहने की प्रार्थना की जाती है.

आखरी बार शांति का उद्घोष आध्यात्मिक शांति के लिए किया जाता है. इसमे ईश्वर से प्रार्थना की जाती है की हम अपने रोजमर्रा में जो भी सामान्य या अतरिक्त कार्य करे उसमे हमें किसी भी प्रकार की बाधाओ का सामना न करना पड़े.



कलश पूजा क्यों की जाती है ?

आम तौर पर हर हिंदू पूजा में एक कलश (जो प्रायः पीतल, ताम्बे या मिट्टी का) होता है जिस में पानी भरा जाता है. इसके मुंह पर आम की पत्तियां रखी जाती है, ऊपर एक नारियल रखा जाता है और फिर इसे लाल या सफ़ेद धागे से चारो और से बाँधा जाता है.

लोटे में पानी भर कर चावल के कुछ दाने डालने की क्रिया को पूर्ण कुम्भ भी कहते है जो हमारे जीवन को भरा पुरा होना दर्शाता है.

चूँकि पृथ्वी पर पहले केवल पानी था और पानी से ही जीव की उत्पत्ति हुई है इसलिए कलश का जल सम्पूर्ण पृथ्वी का द्योतक है. जिससे जीवन का आरम्भ हुआ था. नारियल और आम की पत्तियां सृजनात्मकता या जीवन को दर्शाती है.

धागे से बाँध कर रखने का उद्देश्य विश्व की सम्पूर्ण उत्पत्ति को एक सूत्र में पिरोना दर्शाता है.



शंख क्यों बजाया जाता है ?

शंख बजाने से ॐ की मूल ध्वनि का उच्चारण होता है. भगवान ने श्रष्टि के निर्माण के बाद सबसे पहले ॐ शब्द का ब्रहानाद किया था. भगवान श्री कृष्ण के भी महाभारत में पाञ्चजन्य शंख बजाय था इसलिए शंख को अच्छाई पर बुरे की विजय का प्रतीक भी माना जाता है. ये मानव जीवन के चार पुरुषार्थ में से एक धर्म का प्रतीक है.
शंख बजाने का एक कारण ये भी है की शंख की ध्वनि से जो आवाज़ निकलती है वो नकारात्मक उर्जा का हनन कर देती है. आस पास का छोटा मोटा शोर जो भक्तो के मन और मस्तिष्क को भटका रहा होता है वो शंख की ध्वनि से दब जाता है और फिर निर्मल मन प्रभु के ध्यान में लग जाता है.

प्राचीन भारत गाँव में रहता था जहाँ मुख्यत एक बड़ा मन्दिर होता था. आरती के समय शंख की ध्वनि पुरे गाँव में सुने दे जाती थी और लोगो को ये संदेश मिल जाता था कि कुछ समय के लिए अपना काम छोड़ कर प्रभु का ध्यान कर ले.



उपवास का क्या महत्त्व है

उप+वास=उपवास;मतलब आराध्य के नजदीक रहना ; उसको देखना उसको समझना उसके गुणों को जानना ; उसके गुणों का चिंतन करना ; गुणों को आत्मसात करना. भगवान हमें यह नहीं कहते कि तुम्हें उपवास करना ही है। यह सब तो हमारी मर्जी से चलते है। फिर क्यों न उपवास को सही ढंग और सही नियम से किए जाए ताकि हमें सही अर्थ में उसका फल भी प्राप्त हो।

वैज्ञानिक रूप से भी शरीर की शुद्धि के लिए व्रत का महत्त्व स्वीकार किया गया है | उपवास का सही अर्थ दिन में एक बार फल का आहार लेना, एक आसन पर बैठकर एक ही समय में खाना ताकि बार-बार खाने में न आए, उपवास के हर दिन कोई एक अलग वस्तु का त्याग करना ऐसा ही कुछ होना चाहिए। लेकिन होता ऐसा नहीं और कुछ ही होता है। जब उपवास करने के दिन नजदीक आने लगते है तभी लोग घरों में अलग-अलग प्रकार की मिठाई, फलाहारी व्यंजन आदि बनाकर पहले से ही रख लेते है। और उपवास के दिनों में जो अलग-अलग व्यंजन बनेंगे सो अलग। ऐसे में उपवास का सही अर्थ क्या होता है यह समझना मुश्किल ही है।

दरअसल सैकड़ों सालों से चले आए धार्मिक रीतिरिवाजों को हम तोड़-मरोड़कर अब इस्तेमाल कर रहे हैं। जरूरत है उपवास शब्द को सही तरह से समझा जाए और उसके बाद ही उपवास के बंधन में बंधा जाए।

उपवास का अर्थ संयम भी है। संयम का अर्थ है दिनभर की चाय या खान-पान पर संयम करना। ऐसा नहीं कि भूख नहीं लगी हो फिर भी मुँह चलाते रहने के लिए कुछ न कुछ खाते रहना। अगर उपवास के नाम पर तरह-तरह के व्यंजन ही बनाकर खाना हो और तरह-तरह के फल ही खाना हो, दिन भर मुँह चलाना हो तो फिर उपवास करना ही बेकार है.


पुस्तक को पाँव से क्यों नहीं छूते है ?

हिन्दू धर्म में ज्ञान को पवित्र और अलौकिक माना गया है. आप पाएंगे की हिन्दू धर्म में सरस्वती पूजा, दवात पूजा, आयुध पूजा भी की जाती है. किसी भी चीज़ को पाँव से छूना अपमानजनक माना गया है. पुस्तक सम्मानीय है और उसका दर्जा बड़ा है इसलिए पाँव से छूकर पुस्तक का अपमान नहीं किया जाता.

1 comment:

  1. बहुत सुंदर और तार्किक जानकारी..... आभार

    ReplyDelete