Saturday, February 25, 2012

कामातुराणां - न लज्जा - न भयम् !!



संस्कृत की इस सूक्ति पर संभवतः अत्यल्प महानुभावों ने गहन विचार करने का कष्ट किया है परन्तु सत्य यह है कि इस सूक्ति में महाभयंकर मारक क्षमता छिपी हुई है |
इस सूक्ति का अर्थ है कि काम (कामनाओं) से पीड़ित (आतुर) व्यक्ति को न लज्जा आती है एवं न ही उसे भय लगता है |

अर्थात काम वासनाओं से पीड़ित - काम पिपासु - कामातुर व्यक्ति विवेकहीन हो जाता है इसमें लेशमात्र भी संशय नहीं है - एवं अविवेकी व्यक्ति अपनी काम तृष्णा की संतुष्ठी के लिए निर्लज्ज होकर - भयहीन हो कर किसी भी जघन्यतम कार्य के लिए उद्दत रहता है |

काम तृष्णा का स्वभाव है कि उसे एक बार तृप्त करने का उपाय अथवा प्रयत्न करने पुनः अतृप्ति की अवस्था को प्राप्त हो जाती है |

जिस प्रकार अग्नि में घृत की आहुति देने से अग्नि शांत नहीं होती अपितु अधिक प्रज्वलित होती है - उसी प्रकार काम तृष्णा की संतुष्ठी भी उसे शांत करने के स्थान पर अधिक उत्तेजित - प्रज्जवलित करती है - पिपासा को जागृत करती है | 

इस संस्कृत सूक्ति को बहुत अच्छी तरह केवल भारत के शत्रुओं ने ही ठीक से समझा है एवं उसका भरपूर प्रयोग कर रहें हैं |

उपरोक्त कथन को ठीक से समझने के लिए दो कहावतों को भी समझ लेना आवश्यक है |

१. पहली कहावत है कि यदि कोई (शत्रु) गुड़ खिलने से मरता हो तो जहर क्यों दें | किसी शत्रु को जहर दे कर मारने में बहुत से नुकसान हैं | जहर के पैसे ज्यादा लगते हैं - खरीदने जायेंगे तो दुकानदार शंका करेगा और संभवतः खरीददार का चेहरा या पता याद रक्खेगा ताकि पुलिस केस होने पर गवाही दे सके - फिर शत्रु जहर वाली वस्तु खायेगा कि नहीं - और अंत में कहीं भेद खुल गया तो सज़ा मिलना निश्चित है | इन सब के ठीक विपरीत यदि शत्रु को रोज मीठा खिलाओ तो शत्रु भी ख़ुशी ख़ुशी खायेगा और मधुमेह के रोग से पीड़ित हो कर धीरे धीरे परन्तु निश्चित रूप से मारेगा और किसी को कोई शंका नहीं होगी और सबसे सुरक्षित बात तो यह है कि मीठा खिला खिला कर मारने पर कोई अपराध नहीं बनता है |

२. दूसरी कहावत है कि किसी (शत्रु ) को बर्बाद करना हो तो उसकी औलाद को ग़लत आदतें लगा दो | शत्रु को खूब शारीरिक मानसिक और आर्थिक तकलीफ दे कर धीरे धीरे लेकिन निश्चित रूप से मारना हो तो उसके बच्चों से दोस्ती कर के बहुत प्यार दिखाते हुए - शत्रु की नजरों में उसके बच्चों का शुभचिंतक बनते हुए - उनमें बहुत धीरे धीरे से गन्दी और खर्चीली आदतें डालना शुरू कर दो | शत्रु भी खुश - बच्चे भी खुश - पड़ोसी भी खुश - और बच्चे धीरे धीरे चंगुल में फंसते चले जायेंगे | 

पहले के ज़माने के बच्चों को दादी और नानी की कहानियां पसंद थीं - पंचतंत्र की शिक्षाप्रद कहानियां पसंद थीं - अब उन्हें कार्टून चैनल्स दिखाओ | बच्चे कार्टून चैनल्स में व्यस्त रहेंगे तो घर में शांति बनी रहेगी जिससे बच्चों की माँ का दिमाग शांत रहेगा | बच्चों को कार्टून चैनल्स के माध्यम से पहले उनकी पढाई लिखाई से सम्बंधित पेन्सिल - रबर - शार्पनर के विज्ञापन दिखा कर शुभचिंतक बनने का स्वांग रचते हुए उनके माँ बाप को बाध्य करो कि वे विज्ञापित वस्तुएं ही खरीदें | उसके बाद मीठी गोलियों से आरंभ कर के धीरे धीरे शरबत पर आ जाओ | माँ बाप वह भी खरीदना शुरू कर देंगे | उसके बाद बच्चों के लिए नाश्ते और उसके बाद उनके खाने की वस्तुओं का विज्ञापन चालू कर दो | इस २-३ वर्ष के समय में ३ से ६ वर्ष की उम्र के बच्चे पूरी तरह से चंगुल में फँस चुके होंगे | उनका दिमाग पूरी तरह से विज्ञापनों में कहे गए शब्दों को ही परम सत्य एवं आदेश कर अक्षरशः पालन करने के लिए प्रोग्राम कर दिया गया है | उसके बाद ५-६ वर्ष की बालिकाओं को बार्बी डौल के विज्ञापन दिखाओ जिसे देख कर वे अपने माँ बाप को बाध्य हो कर उसे खरीदना पड़े | बार्बी डौल यूँ तो छोटी बच्चियों के लिए खेलने की गुडिया है लेकिन उसके शारीरिक विकास को एवं उसके वस्त्रों को देखा जाय तो वह पूर्ण-यौवना दिखाई देती है | इस तरह बार्बी डौल से खेलते खेलता कम उम्र बच्चियों में यौन उत्सुकता अनायास ही घर कर लेती है एवं वे उसका समाधान खोजने लगती हैं | इस प्रकार शत्रु की लड़कियां जब कम उम्र में ही काम निपुण हो जाती हैं तब वे खुद जाल में फँसने के लिए और दूसरों को अपने रूप जाल में फँसाने के लिए एक उपयुक्त माध्यम बन जाती हैं | इस मामले को आगे बढ़ाने के लिए पहले सिनेमा का इस्तेमाल होता था परन्तु अब घर घर में २४ घंटे चलने वाले टीवी के अश्लील विज्ञापनों एवं अश्लील कार्यक्रमों ने भारत के शत्रुओं का भरपूर सहयोग दिया है |

ऐटम बम से लाखों लोग मर जाते हैं - स्थान एवं माल भी नष्ट हो जाता है | परन्तु "कामातुराणां - न - लज्जा - न - भयं" का ब्रह्मास्त्र प्रयोग करने से शत्रु (भारत) की युवा पीढ़ी मानसिक गुलाम बन गयी है - और ये ऐटम बम की बनिस्बत बहुत सस्ता और अच्छा सौदा है | इसे कहते है - हर्र लगे न फिटकरी - रंग आये चोखा |

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